भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भूमिका

  Last Update - 2024-01-04

Role Of Women In Indian National Movement In Hindi

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई केवल पुरुषों की हिस्सेदारी से फतह नहीं की गयी बल्कि इस महायज्ञ में महिलाओं की भूमिका भी उल्लेखनीय है। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अंग्रेजों के विरूद्ध पुरूषों के कंधे से कंधा मिलाकर देश की बेटियों ने अपना कर्तव्य निभाया। उन्होने अंग्रेजों के विरूद्ध कदम उठाए, वीरता और साहस तथा नेतृत्व की क्षमता का अभूतपूर्व परिचय दिया। 1857 के बगावत के समय राजघराने की महिलाएं आजाद भारत का सपना पूरा करने के लिए पुरूषों के साथ एकजुट हुईं। इनमें प्रमुख थीं इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर और झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई। 1857 की हार के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी का स्थान ब्रिटिश सरकार ने ले लिया और ब्रिटिश शासन एक ऐतिहासिक सच बन गया।

इतिहास गवाह है कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जहां पुरुषों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, तो महिलाएं भी पीछे नहीं रहीं। महिलाओं ने समय-समय पर अपनी बहादुरी और साहस का प्रयोग कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चली। रानी लक्ष्मी बाई और रानी चेनम्मा जैसी वीरांगनाओं ने अंग्रेजों से लड़ते हुए अपनी जान दे दी। तो सरोजिनी नायडू और लक्ष्मी सहगल जैसी वीरांगनाओं ने देश की आजादी के बाद भी सेवा की। आज आप इस अध्याय में उन महिलाओं के बारे में सामान्य ज्ञान जानकारी प्राप्त करेंगे जिन्होंने भारत को आज़ाद कराने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की प्रमुख महिलाओं सूची:

  • ऊषा मेहता: स्वतंत्रता सेनानी ऊषा मेहता ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान कुछ महीनों तक कांग्रेस रेडियो काफ़ी सक्रिय रहा था। वह भारत छोड़ो आंदोलन के समय खुफिया कांग्रेस रेडियो चलाने के कारण पूरे देश में विख्यात हुईं। इस रडियो के कारण ही उन्हें पुणे की येरवाड़ा जेल में रहना पड़ा। वे महात्मा गांधी की अनुयायी थीं।
  • अरुणा आसफ़: अरुणा आसफ़ अली भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं। उनका जन्म का नाम अरुणा गांगुली था। उन्हे 1942 मे भारत छोडो आंदोलन के दौरान, मुंबई के गोवालीया मैदान मे कांग्रेस का झंडा फ्हराने के लिये हमेशा याद किया जाता है। उन्होंने एक कार्यकर्ता होने के नाते नमक सत्याग्रह में भाग लिया और लोगों को अपने साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मासिक पत्रिका ‘इंकलाब’ का भी संपादन किया। सन् 1998 में उन्हें भारत रत्न से सम्मांनित किया गया था।
  • दुर्गा बाई देशमुख: दुर्गाबाई देशमुख भारत की स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा स्वतंत्र भारत के पहले वित्तमंत्री चिंतामणराव देशमुख की पत्नी थीं। दुर्गा बाई देशमुख ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया व भारत की आज़ादी में एक वकील, समाजिक कार्यकर्ता, और एक राजनेता की सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र से लेकर महिलाओं, बच्चों और ज़रूरतमंद लोगों के पुनर्वास तथा उनकी स्थिति को बेहतर बनाने हेतु एक ‘केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड’ की नींव रखी थी।
  • सुचेता कृपलानी: सुचेता कृपलानी एक स्वतंत्रता सेनानी थी और उन्होंने विभाजन के दंगों के दौरान महात्मा गांधी के साथ रह कर कार्य किया था। इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्होंने राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई थी। उन्हें भारतीय संविधान के निर्माण के लिए गठित संविधान सभा की ड्राफ्टिंग समिति के एक सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया था। उन्होंने भारतीय संविधान सभा में ‘वंदे मातरम’ भी गाया था। सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री थीं।
  • कमला नेहरू: कमला नेहरू भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के शीर्ष नेता एवं भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की धर्मपत्नी थी। कमला नेहरू महिला लौह स्त्रीव साबित हुई, जो धरने-जुलूस में अंग्रेजों का सामना करती, भूख हड़ताल करती और जेल की पथरीली धरती पर सोती थी। नेहरू के साथ-साथ कमला नेहरू और फ़िर इंदिरा की प्रेरणाओं में देश की आज़ादी ही सर्वोपरि थी। असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर शिरकत की थी।
  • सरोजिनी नायडू: सरोजिनी नायडु पहली भारतीय महिला कॉग्रेस अध्यक्ष और ‘भारत की कोकिला’ इस विशेष नाम से पहचानी जाती है। सरोजिनी नायडू ने खिलाफ़त आंदोलन की बागडोर संभाली और अग्रेजों को भारत से निकालने में अहम योगदान दिया
  • विजयलक्ष्मी पंडित: विजय लक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थीं। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में विजय लक्ष्मी पंडित ने अपना अमूल्य योगदान दिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हेंल जेल में बंद किया गया था। भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली महिला मंत्री थीं। वे संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष थीं और स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत थीं जिन्होंने मास्को‍, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
  • मैडम भीकाजी कामा: मैडम भीकाजी कामा ने आज़ादी की लड़ाई में एक सक्रिय भूमिका निभाई थी। वह भारतीय मूल की पारसी नागरिक थीं जिन्होने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। वे जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराने के लिए सुविख्यात हैं। भीकाजी ने स्वोतंत्रता सेनानियों की आर्थिक मदद भी की और जब देश में ‘प्लेग’ फैला तो अपनी जान की परवाह किए बगैर उनकी भरपूर सेवा की। स्वतंत्रता की लड़ाई में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
  • कस्तूरबा गांधी: कस्तूरबा गांधी महात्मा गांधी की पत्नी जो भारत में बा के नाम से विख्यात है। आज़ादी की लड़ाई में उन्होंने हर कदम पर अपने पति का साथ दिया था, बल्कि यह कि कई बार स्वकतंत्र रूप से और गांधीजी के मना करने के बावजूद उन्होंने जेल जाने और संघर्ष में शिरकत करने का निर्णय लिया। उन्होंने लोगों को शिक्षा, अनुशासन और स्वास्थ्य से जुड़े बुनियादी सबक सिखाए और आज़ादी की लड़ाई में पर्दे के पीछे रह कर सराहनिय कार्य किया है।
  • कनकलता बरुआ: कनकलता बरुआ असम की रहने वाली थीं। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्होंने कोर्ट परिसर और पुलिस स्टेशन के भवन पर भारत का तिरंगा फहराया।  कनकलता बरुआ महज 17 साल की उम्र में पुलिस स्टेशन पर तिरंगा फहराने की कोशिश के दौरान पुलिस की गोलियों का शिकार बन गईं।
  • एनी बेसेन्ट: प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया था तथा भारतीय राष्ट्रवाद को अंगीकार किया था।  1890 में ऐनी बेसेंट हेलेना ब्लावत्सकी द्वारा स्थापित थियोसोफिकल सोसाइटी, जो हिंदू धर्म और उसके आदर्शों का प्रचार-प्रसार करती हैं, की सदस्या बन गईं। भारत आने के बाद भी ऐनी बेसेंट महिला अधिकारों के लिए लड़ती रहीं। महिलाओं को वोट जैसे अधिकारों की मांग करते हुए ऐनी बेसेंट लागातार ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखती रहीं। भारत में रहते हुए ऐनी बेसेंट ने स्वराज के लिए चल रहे होम रूल आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • रानी लक्ष्मीबाई: रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी थीं और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजी हुकुमत के विरुद्ध बिगुल बजाने वाले वीरों में से एक थीं। वे ऐसी वीरांगना थीं जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में ही ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से मोर्चा लिया और रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गयीं परन्तु जीते जी अंग्रेजों को अपने राज्य झाँसी पर कब्जा नहीं करने दिया।
  • बेगम हज़रत महल: बेगम हज़रत महल अवध के शासक वाजिद अली शाह की पहली पत्नी थीं। सन 1857 में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह किया। इन्होंने लखनऊ को अंग्रेज़ों से बचाने के लिए भरसक प्रयत्न किए और सक्रिय भूमिका निभाई। बेगम हजरत महल की हिम्मत का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने मटियाबुर्ज में जंगे-आज़ादी के दौरान नज़रबंद किए गए वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंध लगा दी थी। योजना का भेद खुल गया, वरना वाजिद अली शाह शायद आज़ाद करा लिए जाते।
  • डॉ. लक्ष्मी सेहगल: पेशे से डॉक्टर लक्ष्मी सहगल ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर प्रमुख भूमिका निभाई थी। उनका पूरा नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन सहगल था। वे आजाद हिन्द फौज की अधिकारी तथा आजाद हिन्द सरकार में महिला मामलों की मंत्री थीं। वे व्यवसाय से डॉक्टर थी जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय प्रकाश में आयीं। वे आजाद हिन्द फौज की ‘रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट’ की कमाण्डर थीं। उन्हें वर्ष 1998 में पद्म विभूषण से नवाजा गया था।

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